पर्यटन
ज़िंदगी, लहरों से खेलती
चेतावनियों की उपेक्षा करती
पर भंवर की क्षुधा से बचते हुए
लहरों के उतार चढ़ाव को झेलती
दुःख ,भ्रम उम्मीदों, आकांक्षाओं का बोझा लिए
समुन्दर में भटक रही है
ढुलमुल और निराधार निर्णय ले कर I
गंतव्य की तलाश में
डालती है अपना लंगर
एक गहन विचार करने को
स्थिति समझ, बाहर निकलने को
अपनी तृष्णाओं ,आशाओं,अपेक्षाओं पर
संयम और आत्म नियंत्रण के साथ
फिर लंगर उठा
पोत को निर्देशित कर
पहुंचती हैं वांछित स्थान पर, ज़िंदगी II
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल