परोपकार में प्रचार
परोपकार में प्रचार
अधिकतर लोगों में परोपकार के बाद आत्म-प्रचार का जुनून सवार होता है। यह जुनून हमें आत्म-मुग्धता की ओर ले जाता है। इस तरह हमारी यह आत्म-मुग्धता लगातार बढ़ती जाती है। हम परोपकार कर आत्म-प्रचार के जरिए आत्म-मुग्ध होते रहते हैं और यह भ्रम पाल लेते हैं कि हम कोई बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। इस तरह की समाज सेवा अंतत: हमारा अहित ही करती है। ऐसी समाज सेवा का दुखद पहलू यह है कि यह हमारे अंदर एक अजीब किस्म का अहंकार भी पैदा करती है। सवाल यह है कि क्या अहंकार से ग्रसित इंसान सच्ची समाज सेवा कर सकता है?
जब हम परोपकार के प्रचार पर अपना ध्यान केंद्रित करने लगते हैं, तो समाज सेवा का भाव पीछे हो जाता है और प्रचार का भाव मुख्य हो जाता है। इस उपक्रम से हमें खुशी तो मिलती है, पर यह सच्ची खुशी नहीं होती, क्योंकि इसमें प्रचार की खुशी भी शामिल होती है। धीरे-धीरे हम केवल प्रचार की खुशी हासिल करने का प्रयास करने लगते हैं। इस तरह, परोपकार की भावना और उसकी खुशी पीछे छूट जाती है। दरअसल, परोपकार में केवल त्याग की भावना होनी चाहिए। परोपकार के बहाने दूसरे से अपना स्वार्थ साधने की कोशिश अंतत: हमें दुख ही प्रदान करती है। इसलिए परोपकार के बदले में दूसरे से कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा हमें कभी नहीं करनी चाहिए। नि:स्वार्थ सेवा का दूसरा नाम ही परोपकार है।
परोपकार एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ शायद ही कोई न जानता हो, यह एक ऐसी भावना है जिसका विकास बचपन से ही किया जाना चाहिए। हम सबने कभी न कभी किसी की मदद जरुर की होगी और उसके बाद हमे बड़ा की गर्व का अनुभव हुआ होगा, बस इसी को परोपकार कहते हैं। परोपकार के कई रूप हैं, चाहे यह आप किसी मनुष्य के लिये करें या किसी जीव के लिये।
आज-कल लोग अधिक व्यस्त रहने लगे हैं और उनके पास अपने लिये समय नहीं होता ऐसे में वे दूसरों की मदद कैसे कर पाएंगे। ऐसे में यह आवश्यक है की परोपकार को अपनी आदत बना लें इससे आप खुद तो लाभान्वित होंगे ही अपितु आप दूसरों को भी करेंगे। राह चलते किसी बुजुर्ग की मदद करदें तो कभी किसी दिव्यांग को कंधा देदें।यकीन मानिए कर के अच्छा लगता है, जब इसके लिये अलग से समय निकालने की बात की जाये तो शयद यह कठिन लगे। आज कल के दौर में लोग दूसरों से सहायता लेने से अच्छा अपने फोन से ही सारा काम कर लेते हैं परन्तु उनका क्या जिनके पास या तो फोन नहीं है और है भी तो चलाना नहीं आता। इसी लिये परोपकारी बनें और सबकी यथा संभव मदद अवश्य करें।
परोपकार की बातें हमारे धर्म ग्रंथों में भी लिखी हुई हैं और यही मानवता का असल अर्थ है। दुनिया में भगवन किसी को गरीब तो किसी को अमीर क्यों बनाते हैं? वो इस लिये ताकि जिसके पास धन है, वो निर्धन की मदद करे। और शायद इसी वजह से वे आपको धन देते भी हैं, ताकि आपकी परीक्षा ले सकें। जरुरी नहीं की यह केवल धन हो, कई बार आपके पास दूसरों की अपेक्षा अधिक बल होता है तो कभी अधिक बुद्धि। किसी भी प्रकार से दूसरों की मदद करने को परोपकार कहते हैं और यही असल मायनों में मानव जीवन का उद्देश होता है। हम सब इस धरती पर शायद एक दुसरे की मदद करने ही आये हैं।कई बार हमारे सामने सड़क दुर्घटनाएं हो जाती हैं और ऐसे में मानवता के नाते हमें उस व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को सबकी निस्वार्थ मदद करनी चाहिए और फल की चिंता न करते हुए अपना कर्म करते रहना चाहिए।
परोपकार से बढ़ के कुछ नहीं है और हमे दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए की वे बढ़-चढ़ कर दूसरों की मदद करें। आप चाहें तो अनाथ आश्रम जा के वहां के बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं या अपनी तनख्वा का कुछ हिस्सा गरीबों में बाँट सकते हैं। परोपकार अथाह होता है और इसका कोई अंत नहीं है इस लिये यह न सोचें की केवल पैसे से ही आप किसी की मदद कर सकते हैं। बच्चों में शुरू से यह अदत विकिसित करनी चाहिए। बच्चों को विनम्र बनायें जिससे परोपकार की भावना स्वतः उनमें आये। एक विनम्र व्यक्ति अपने जीवन में बहुत आगे जाता है और मानवता को समाज में जीवित रखता है।
आभा सिंह लखनऊ उत्तर प्रदेश