परेशान दिल्ली बेचारी
धूल से है धुंध गहरी
मिट रही है छवि सुनहरी।
धुआं हो गयी हवा सारी।
परेशान दिल्ली बेचारी।
दिन नहीं वो दूर अब है
प्रदूषण के मारे सब है ।
दावे है अब हवा हवाई
इस मुसीबत की क्या दवाई ।
सांस भी हम ले न पाते।
अजब सी है घुटन सारी।
परेशान दिल्ली बेचारी।
हम कहे विज्ञान वाले
फिर प्रदूषण क्यों है पाले।
कुछ है आदत बदल डालो।
सुनो ध्यान से देशवालो।
स्वच्छता सेहत का घर है ।
पर पड़ा कूडा जिधर है
हम सभी की जिम्मेदारी ।
स्वच्छता आदत हमारी।
हवा पानी भोजन हो दूषित
तब रहेंगे कैसे जीवित।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र