परी है माँ
एक शिशु के लिए परी है माँ
काम सारे करे भली है माँ
जब मचलता सदा रहे बालक
तब मुहब्बत भरी नदी है माँ
लाड़ली जब चले पढाई को
सीख देती सही सखी है माँ
हो बड़ी जब सजे संवरती वो
मनचलों से बड़ी डरी है माँ
शाम को देर तक न लोटे जब
आँख में अश्रु से भरी है माँ
जब नयी राह पर बढी बिटियाँ
तब सभी कष्ट से दबी है माँ
ब्याह कर जब गयी पराये घर
तब खुशी में बहुत फली है माँ
नाम बेटी कमा रही हो तब
तान सीना तभी खडी है माँ
देख छूता उसे गगन को तब
पेड़ पर फूल सी खिली है माँ
देख आगे पुरूष से उनको
रोज दीपावली मनी है माँ
इस धरा जब तलक रहेगी माँ
कल्प हर शक्ति ही रही है माँ
डॉ मधु त्रिवेदी