परिसर खेल का हो या दिल का,
परिसर खेल का हो या दिल का,
आजमाइश तो जरूर होती है,
कुछ टूट जाते है इस भाग दौड़ में,
किसी एक की मेहनत सफल होती है,
कठिनाइयां हर क्षेत्र में आती है,
सफलता वो ही तो लाती है,
निर्भीकता से जो डटा रहा मैदान में,
उसी को बस पुरुस्कार दे जाती है,
खेल कोई भी हो भावना हो सच्ची,
उसी को मिलती एक दिन मंजिल अच्छी,
जो खेल खेल भावना से नही खेलता,
उसका कोई भी परिसर अपना नही होता,
हर परिसर से प्रेम, मेहनत पर दे जोर,
सफलता कदम चूमेगी हर ओर.