परिवार
दुनिया ए महफ़िल में हमें ऊपरवाले ने कई रिश्तों से सजाकर भेजा है,
जिंदगी जी सके हम खुलकर इसलिए उसने परिवार से नाता जोड़ा है,
छोटा या बड़ा हो या हो कोई रूप इसका कोई फर्क न हम पर पड़ने वाला है,
पर जो हर वक़्त हमारे साथ खड़ा हो वो रिश्ता परिवार नामवाला है,
शुरू होती जहा सुबह अपनों की आवाज़ से,
और दिन ढलता वहीं पर सुनकर छोटों की किलकारी से,
क्या कहूं उस घर को जहां परिवार ही जन्नत का बसेरा है,
साथ ने जिसके हमको खुशी ने हर वक़्त यूं ही घेरा है,
आधार अपने समाज का यह अच्छाई की नींव जो रखता है,
है समाज की रीढ़ यह जिसने समाज को थामे रखा है,
चलते जब समाज संग हम तो मिलते कई चेहरों से,
उन चेहरों में भी हमने रिश्ता नया खोजा है
पर चलना सिखाया जिन रिश्तों की डोर ने हमें,
हमने उस परिवार का साथ मरते दम तक भी न छोड़ा है
अहमियत समझना अपने परिवार की है हिन्द की भी रीत यही,
भूल न जाना कामयाबी की चकाचौंध में इसको ,
है वेदों पुराणों का भी सार यही