परिवार
परिवार
एक गांव में सोनुराम नाम का वृद्ध रहता था।उसके नौ बेटी और चार बेटा रहता है ।परिवार बहुत बड़ा था। परिवार का लालन पालन खेती मजदूरी करके परिवार का भरण पोषण करता था। सोनू राम की पत्नी बहुत परेशान रहती थी । परिवार बड़ा होने के कारण दिनोंदिन उनके बाल बच्चे झगड़ते रहते थे।सुबह होता कि चाय रोटी के लिए झगड़ते स्कूल जाने समय पुस्तक कापी के लिए झगड़ते कहीं न कहीं बच्चे के लिए कई बहाना मिल जाते और एक दूसरे झगड़ते रहते । मां काफी परेशान रहती थी फिर भी मां की ममता सभी बच्चों को लाड प्यार देने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती ।एक दिन सोनू का बेटा रंगा और बिल्ला कपड़ा के लिए दो-दो हाथ हाथापाई हो गए।रंगा का शर्ट बिल्ला पहन लिया था ।बिल्ला ने उससे गुस्से में इसका शर्ट फाड़ दिया जब उसका पिताजी काम करके घर आया देखा बिल्ला को खूब डांट फटकार पड़ी और उसके लिए कपड़ा भी नहीं लिया एक-एक पैसे कमा कर इकट्ठा करता लेकिन परिवार चलाना इतना आसान नहीं था।आटे दाल भाव का मालूम सोनू राम को परिवार पालन-पोषण से ही पता चल गया ।एक दिन अचानक रंगा का बहुत तबीयत खराब हुआ उसकी मां उसकी हालत देखकर जोर जोर से रो रही थी पैसे के लिए उस घर उस घर दर-दर भटक रही थी अंत में पैसे के अभाव में उसका बेटा दम तोड़ दिया।सोनू राम भी सोचने लगा इतना ज्यादा बच्चा परिवार चलाना बहुत कठिन है मन मन खुद कर रोने लगा।बहुत पश्चाताप किया। अंत मे उसके जीवन में एक ऐसा बदलाव आया कि सोनू राम को गांव में सरपंच बनने का अवसर मिला ।तब सरपंच गांव का मुखिया होने के नाते पूरे गांव को चलाया विकास कर गांव को तरक्की की ओर ले गया। गांव में एक ऐसे बदलाव लाया की हम दो हमारे दो की योजना को पहल कर लोगो को जागरूक किया। उस पंचायत में गांव में किसी भी व्यक्ति का 2 बच्चे से अधिक बच्चा पैदा नही किया।लोगों को समझाते थे। अपनी व्यथा को लोगों सुनाते थे ।फिर उस गांव में खुशहाली आ गया लोग सोचने लगे जनसंख्या बढ़ाने से कोई लाभ नहीं है इसलिए छोटा परिवार सुखी परिवार ही सर्वोत्तम है।
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रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना, बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822