परिवार
(१)
कितना सुंदर लगता है जब, सामूहिक परिवार हो,
दादा दादी की शिक्षा, भाई बहनों का प्यार हो ।
मात पिता के संस्कार, सब एक दूसरे के पूरक,
आज कहां आनंद रहा जब, विघटित घर परिवार हो ।।
(२)
हँसते खिलते तन-मन मंदिर, दिल में अप्रतिम प्यार है,
दुख- दर्दों की ऐसी- तैसी, संग में जब परिवार है ।
परिजन के आशीष रहें और स्नेहातुर अपने जन हों,
‘नवल’ क्या करे तीरथ में, घर में काशी हरिद्वार है।।
– नवीन जोशी ‘नवल’