परिवार नियोजन दास्तान
*******परिवार नियोजन दास्तान******
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परिवार नियोजन योजना का है यह सार
दशक अनुसार योजना का बदला आधार
उन्नीस सौ सत्तर पूर्व योजना का था ये हाल
हम दो और हमारे बच्चे थे भारतीय बाजार
उस दौर के नियोजन के नारे भी थे अच्छे
जितने होंगे बच्चे दिन होंगें उतने ही अच्छे
फिर आया अचानक जनसँख्या में उछाल
इन्दिरा ने लाया आपातकालीन का भूचाल
जनसँख्या वृद्धि रोकथाम के झंडे गाढ दिए
कुँवारों के भी मर्दाना ओपरेशन काट दिए
उनके दुल्हन दर्शन स्वप्न चकनाचूर हो गए
बदले में रेडियो के ही उपहार कबूल हो गए
परिवार नियोजन योजना में हुआ एक सुधार
घर में बच्चें हों चार आएगी खुशी की बहार
दो हों लड़के और दो ही हों घर में लड़कियाँ
चाचे और मौसी के रिश्तों में हों तरक्कियाँ
इस योजना में भी होती थी कुछ विफलताएं
कहीं चाचे कहीं मौसी की लग जाती कतारें
सदी पल्टी ,सोच बदली ,हुआ एक बदलाव
परिवार नियोजन नारों में भी आया सुझाव
परिवार नियोजन नारे की दशा बदल निकली
हम दो हम हमारे दो की ही रीत चल निकली
एक ही हो लड़का और एक ही हो बस बहन
खुशियाँ हों बेशुमार, प्यार से रहें भाई बहन
वर्तमान में तो नियोजन का नारा वाह कमाल
पहला हो जाए बेटा तो बेटी का नहीं सवाल
रक्षाबंधन कीत्र राखी बंधवाने जाए पर द्वार
बेटियों के अभाव में बंद हो जाएंगे सब द्वार
लड़के रह जांएगे जब कुँवारे तब खुलेंगे नैन
फिर कहेंगे भाई की. भी होनी चाहिए बहन
बहन .नहीं होगी तो हम बहू कहाँ से लांएगे
संसार में अपने बच्चों के घर कैसे बसाएंगे
मेरी इस कविता से सभी ले लो एक सीख
बेटा बेटी दोनों जरूरी मांगो खुदा से भीख
नियोजन होगा संयोजित अच्छी हो सोच
कुटुंब, समाज, देश उन्नति करें हो ऐसी सोच
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)