परिवार के लिए उत्सव की घड़ी
पंडित तेजसिंह तिवारी (जन्म 1800 सदी) निवासी ग्राम- हिरनगऊ तहसील फिरोजाबाद जनपद आगरा (वर्तमान राजस्व ग्राम- हिरनगाँव जनपद फिरोजाबाद) उत्तर-पश्चिमी प्रान्त (वर्तमान -उत्तर प्रदेश ) में, जन्म इनकी कुलदेवी माता बेलोन (नरोरा) के आशीर्वाद से ब्राह्मण परिवार में हुआ था इनके माता पिता को अपनी कुलदेवी पर अटूट विश्वास था मातारानी के आशीर्वाद से जन्म से ही इनका शरीर हष्ट पुष्ट एवं बलवान था बाल्यावस्था में इनके चेहरे पर इतना तेज एवं शरीर में शेर की भाति बल था इनके माता-पिता द्वारा इनके तेज एवं बल को देख कर इनका नाम पंडित तेजसिंह तिवारी रख दिया इनके दो छोटे भाई थे छोटे भाई का नाम फतेह सिंह तिवारी था तीसरे भाई का नाम अज्ञात है तीसरे भाई की शादी नहीं हुई थी बचपन से ही इनको अपने भाइयों से बहुत प्रेम था भाई मिलजुल कर कार्य करते थे और जो कुछ कार्य करने से धन मिलता था उससे अपना जीवन यापन परिवार चलाने के लिए करते थे बाल्यावस्था से ही हिंदुस्तान के प्रति देश प्रेम था, हिंदुस्तानियों के बच्चों को पढ़ने लिखने नहीं दिया जाता था और उन से काम कराया जाता था गौरो द्वारा अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाया जाता था एवं अच्छी शिक्षा दिलाई जाती थी पंडित तेजसिंह तिवारी को यह देखकर बहुत ही बुरा लगता था यह हिंदुस्तानी बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगे कुछ समय बाद इनकी अध्यापक की नौकरी लग गई एक दिन जब यह सुबह उठकर हाथ मुंह धो रहे थे उसी समय इनके घर पर एक अंग्रेज सिपाही आया और घर के बाहर से इनका नाम पुकारने लगा तभी अंदर से पंडित तेजसिंह तिवारी निकल कर बाहर आए और उस अंग्रेज सिपाही से पूछने लगे कि क्या काम है अंग्रेज सिपाही ने इनका नाम पूछा और इनसे कहने लगा कि आपको साहब ने बुलाया है यह कुछ समय बाद अंग्रेज अफसर के घर पर पहुंचे और उनसे पूछने लगे कि क्या काम है साहब तभी अंग्रेज अफसर ने इनसे अँग्रेजी मैं कहां कि (Pandit ji, if you work to teach children, then teach my children also at home ) पंडित जी आप बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं तो मेरे बच्चों को भी घर पर पढ़ा दिया करो, पंडित तेजसिंह तिवारी अंग्रेज अफसर द्वारा बोली गई अंग्रेजी को समझ चुके थे और इन्होंने अंग्रेज अफसर को अंग्रेजी में ही उत्तर दिया और कहा कि ( I do not teach children at anyone’s home but only teach children in school )मैं किसी के घर पर बच्चों को नहीं पढ़ाता सिर्फ पाठशाला में बच्चों को शिक्षा देता हूं, यह सुनकर अंग्रेज अफसर गुस्से से तिलमिला गया ओर इनसे बोला कि पंडित जी आप अच्छा नहीं कर रहे हैं आपको बच्चें पढ़ाने के लिए जितने पैसे चाहिए उतने पैसे मैं दूंगा पंडित तेज सिंह तिवारी द्वारा अंग्रेज अफसर से कहा गया कि मैं पैसे का लालची नहीं हूं किसी अन्य अध्यापक से अपने बच्चों को पड़वा लीजिए यह कहकर पंडित तेजसिंह तिवारी अपने घर ग्राम हिरनगऊ में वापस आ गए और यह घटना अपने परिवार के सदस्यों को बताई, समय के साथ साथ इनका विवाह संपन्न हुआ इसके उपरांत इनको चार पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई इनके पुत्रों का नाम खुशालीराम तिवारी, उमरावसिंह तिवारी, रामलाल तिवारी, देवीराम तिवारी था प्रथम पुत्र रत्न प्राप्त होते ही इनके घर परिवार में खुशहाली आ गई सभी लोग बड़े प्रसन्न थे अपने परिवार की खुशहाली को देखते हुए इन्होंने अपने बड़े पुत्र का नाम पंडित खुशालीराम तिवारी रख दिया समय के साथ-साथ इनके चारों पुत्र बड़े होते गए और अपने सभी पुत्रों का विवाह समय को देखते हुए संपन्न कर दिया पंडित तेजसिंह तिवारी हमेशा अपने बड़े पुत्र पंडित खुशालीराम तिवारी को बताया करते थे कि माता कुलदेवी दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी होती है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देवी होती है अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है। माता बेलोन कुलदेवी का आशीर्वाद प्राप्त कर क्रांतिकारी पंडित तेजसिंह तिवारी ने 1857 की क्रांति की जंग में भाग लिया 1857 की क्रान्ति की शुरूआत ’10 मई 1857′ की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त हिंदुस्तानी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, फिरोजाबाद नगर के संबंध में 13 मार्च 1918 को उत्तर पश्चिम प्रदेश के वेदोंशिक विभाग की एक फाइल जो कि सचिव सचिवालय उत्तर प्रदेश में है जिसमें 1857 क्रांति मैं आगरा क्षेत्र के अंतर्गत घटित घटनाओं का एक छोटा सा विवरण दिया गया है जिसमें कहा गया है कि फिरोजाबाद परगना में स्थित कुछ क्षेत्रों के निवासी हिंसात्मक कार्य में सक्रिय नहीं है फिर भी वह ब्रिटिश शक्ति की आज्ञा की अवहेलना कर रहे हैं इस वृत्तांत से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि फिरोजाबाद नगर में 1857 की क्रांति के बाद भी हिंदुस्तानियों के दिलों में क्रांति की भावना बनी रही पंडित तेजसिंह तिवारी का देहांत ग्राम हिरनगऊ में हो गया इनकी मृत्यु के बाद इनके पुत्रों को बहुत दुख हुआ