परिवार के बिखराव में क्या दोषी नहीं है नारी ?
परिवार एक ऐसी संस्था है जो पुरूष और नारी दोनों के योग से बनती है जहाँ पुरूष परिवार को आकार प्रदान करता है वहीं नारी परिवार को संवारने , सजाने और समस्त सदस्यों को नेह , ममता एवं प्यार के सूत्र में पिरोने का कार्य करती है तथा परिवार की संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करने का कार्य करती है इसलिए नारी की भूमिका परिवार रूपी संस्था को मजबूत से और मजबूत एवं सुदृढ़ बनाने में आधार स्तम्भ का कार्य करती है ।
मर्द हमेशा चाहता है कि जिस परिवार में वह जन्मा है वह उस परिवार को बाँध कर रखना चाहता है मर्द बाहर से जितना कठोर और सख्त नजर आता है है अंदर से उतना ही कमजोर होता है । विवाह उपरांत जीवनसंगिनी से उम्मीद आस रखता है कि वह उसकी भावनाओं को समझें । बदलते परिप्रेक्ष्य के साथ महिलाओं में भी तेजी से बदलाव आया है। जीवन-शैली में बदलाव तो आया ही है शिक्षा एवं व्यवसाय में भी महिला पुरुषों के साथ खड़ी है, लेकिन पुरुषों के लिए महिलाओं की सोच संकुचित ही रही है।
नारी सिर्फ अपनी भावनाएं और परेशानियाँ उन पर थोप देती है लेकिन जीवनसाथी की परेशानियां उनके लिए सिर्फ बात करने के बराबर ही है। उन्हें समझने के लिए न उनके पास समय है न ही दिलचस्पी। ऐसे में अगर किसी अन्य महिला सहयोगी से अपनी समस्या का जिक्र करता है तो उसको गलत नहीं समझना चाहिए ।
नर -नारी एक गाड़ी के दो पहिए है यदि एक पहिया भी पटरी से उतर जायेगा तो बिखराव आना तय है अतः आवश्यकता है एक दूसरे की भावनाओं को समझने की ।
जब नारी पत्नी के रूप में पति के घर आती है तो एक तरह से नयी सदस्य होती है इसलिये पति एवं उससे जुड़े हुए लोगों को उसे समझने की आवश्यकता होती है समझने की इसी प्रकिया के अन्तर्गत जब नारी को लगता है कि उसकी किसी प्रकार की अवहेलना की जा रही है या उसकी बात को वजन नहीं दिया जा रहा वहीं परिवार टूटने लगता है रिश्तों में बिखराव आने लगता है ।
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि जब पत्नी पति तक ही सीमित रहती है और घर के अन्य लोगों की अवहेलना करती है तो तब भी रिश्तों में बिखराव आता है ।
आज के इस तकनीकी युग में स्वतंत्रता , आजादी भी परिवार के टूटने की वजह है अपने पिता के घर में बिना बन्दिशों में पली पति के घर उसी तरह का स्वच्छन्द व्यवहार करती है परिणामस्वरूप परिवार में बिखराव तो आना ही है यहाँ बतान चाहूँगी कि यदि नारी अपनी स्वच्छन्दता को सीमित कर दें तो परिवार को बिखेरने से बचा सकती है ।
इसके अतिरिक्त पति का चरित्र भी दोषी है जिस पति के साथ उसने सात फेरे लिए है वह यदि कु व्यवसन का आदी है तो पत्नी बाध्य होती है ऐसे पति का साथ निभाने में ।
निष्कर्षत: घर रूपी गाड़ी को चलाने के लिए पति एवं पत्नी दोनों में आपसी सामजस्य एवं समझ होना आवश्यक है ।