परिवर्तन
परिवर्तन
मन के द्वार
देती हैं दस्तक
बार-बार
गमी व खुशी
चिन्ता व बेफिक्री
कभी हो जाता है
मन भारी
मानो पड़ा है इस पर
कई मण भार
कभी हो जाता है
फूल के माफिक
हल्का-फुल्का
तरो-ताजा
बदलती रहती है
मनोस्थिति
हुआ प्रतीत
कुछ भी नहीं है स्थाई
जीवन में
परिवर्तन है
प्रकृति का
अभिन्न अंग
-विनोद सिल्ला©