परिवर्तन
परिवर्तन को झेलते,जग के सारे तत्व।
बढ़ते रहने के लिए,इसका बड़ा महत्व।।
हर नूतन क्षण बीतता,परिवर्तन के साथ।
सृष्टि का नियम है यही,कहते दीनानाथ।।
चाहे रीति -रिवाज हो,खान- पान पहनाव।
दृश्यमान संसार में,होते नित बदलाव।।
उतार-चढ़ाव है ज़िन्दगी,जो करता स्वीकार।
फर्क नहीं पड़ता उसे,मिले जीत या हार।।
पानी-सा आगे बढें,चलते रहिये राह।
धारा से बाधा हटे,पूरी होती चाह।।
आँख-मिचौली खेलता,जीवन का हर शाम।
लेकिन साहस -धैर्य से,करते रहना काम।।
सहन- शक्ति जिसमें भरा, नहीं मनाता शोक।
इस परिवर्तन को भला, कौन सका है रोक।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली