परिवर्तन ही स्थिर है
परिवर्तन ही स्थिर है
भूमिका
उसने कहा –
“मृत्यु ही सत्य है”
मैने पूछा कैसे?
उसके बाद बचता ही क्या है– उसने उत्तर दिया
मैने कहा–
मृत्यु के बाद भी परिवर्तित होती हैं आत्माएं
नए शरीर में
नए रूप में
कहती हैं धार्मिक पुस्तकें
सारांश
शरीर के मर जाने से
नहीं मरता व्यक्तित्व, जीवित रहती हैं स्मृतियां
आत्मा हो जाती है परिवर्तित
परिवर्तन नयापन का
नयापन बेचैनी का, संतुष्टि का, ख़ोज का….
उसने कहा ‘झूठ’
सत्य भी बदलकर बन जाता है झूठ, मैने कहा
वह हँसा और सुनने लगा
मैने शुरू की कविता कि
नई भाषा में
बदलते हैं शब्द
कथानक
नई कहानी में
घटना
नए ढंग में
आते हैं नए पत्ते
पुराने पत्तों के झड़ने के बाद
अंत होता है
विशालकाय बरगद का भी
लेकिन जन्म लेता है
नए शिशु की तरह अति सुंदर
पतला छरहरा बांस भी सूखता है
फिर बदलता है नए कपोले के रूप में
बार-बार नई फसलें जन्म लेती हैं
कभी अधिकता में कभी न्यूनता में
लेकिन हमेशा एक समान नहीं
हवा बदल लेती है अपनी गति
कभी-कभी पानी भी
सूरज भी कहां एक समान रहता है
जब भी दिखा देता है अपनी लाल आंखे
पड़ जाता है सूखा और अकाल
बादल भी शहरों को देखकर बरसता है
कभी-कभी नदियों को कर देता है जलमग्न
फिर कभी सूखे रेत में छोड़ देता है उनकी खाली पेट को
धरती भी हर क्षण बदलती रहती है
लट्टू की भांति एक अक्षांश पर
मैं और हम सभी बदलते हैं
हर समय, हर रोज़ एक दूसरे के सामने
बदलते देखते हैं सबको
ईश्वर भी बदल जाते हैं
सभी के
बदलती हैं मान्यताएं
गढ़ी जाती हैं धारणाएं
समय के साथ
समय भी सभी का एक-सा नहीं होता
सदी का समय सौ सालों में
बदलाव का होता है समय
शताब्दियों, दशकों में बदल जाती हैं प्रवृत्तियां
साहित्य की
घटनाएं भी बदल जाती हैं इतिहास की
नए सिरे से
जब भी कोई नया शासक होता है तख्तासीन
पुराने से नए के प्रति सहानुभूति
देती है प्रजा कुछ समय के लिए….
फिर?… उसने गंभीर होकर पूछा
होकर तंग बदल देती है प्रजा
नए शासक को भी
फिर बदलता है समाज भी निरंतर
नए विचारों के साथ
परिवर्तित होती हैं मनोवृत्तियां हमारी
पुरानी अवधारणाओं से
नई धारणा और मान्यताओं के अनुसार
परिवर्तित होते हैं हम धीरे-धीरे
बनाते हैं रास्ते भविष्य के अनुचरों के लिए
ताकि बदल सकें अपनी वर्तमान की
घिसी पीटी, लड़खड़ाती, बे-सूरी, शासन-अनुशासन….
बना सकें नई जीवन-शैली, तंत्र-वन्त्र…
रुको तुम अब पॉलिटिकल हो रहे हो – उसने रोका मुझे
मधुमक्खी हर चांदनी रातों में
चूस लेती है अपनी ही रस
वैसे ही
हर महीने जंगल की एक परिधि
रेस्टोरेंट में बदल जाती है
हर साल बढ़ता है शहर
और घट जाता है गांव कई किलो मीटर
इस तरह
इस तरह बदल रही है दुनिया
तेज़ी से
उसी गति से बदल रही है
हमारी प्रकृति, पर्यावरण
पानी जीवन के लिए
जीवन के लिए हवा
बदल रहा है प्रतिशत में
बदल रहा है न सब?– मैने पूछा
हाँ में सहमति देकर बोला–
बदलना रुकेगा कब?
स्थिर होगा कब?
मैने उत्तर दिया–
क्योंकि
‘परिवर्तन ही स्थिर है’
यह कभी नहीं रूकता
यही निरंतर बदलने की प्रक्रिया है
अटल है, स्थिर है
उसने घंटों सोच में बिताए, बिलकुल चुप
यह उसके अंदर नया बदलाव था
सोचने की प्रक्रिया में रहना
–अभिषेक पासवान