परिवर्तन कब होगा ?
परिवर्तन कब होगा ?
गरीबों के दर्द में झूटे हिस्सेदार हैं यह सारे मतलब के सरदार
मतलब परस्त बस्ती बस्ती घूमते नज़र आये पांच साल में एक बार
रंजिशों की फ़सल बो कर बाँट रहें हम को मज़हब से बार -बार
खून के रंग से तिलक लगा कर सत्ता को हतियाने को बेकरार
ज़ुल्म यह करे बेगुनाहों पर,वादों की मऱहम लेकर बने मददगार
फ़ररयादी से ही करते झूठी तकरार ,बेवस जनता, सारे लाचार,
कहते हैं, सूरत बदल जायेगी जब बनेगें यह सियासतदार
फ़ितरत नहीं,बदल जायेगी सुरत इनकी,नहीं इससे इन्कार
ताकत के गुमान से,शोहरत के अभिमान से,फैलाएं यह अत्याचार
हर बार की तरह, फिर हसरत पुरी कर देेतें हम होकर लाचार
कब तक सिमटते रहेगें,सिसकते-सिसकते मागेंगे अधिकार
तकलीफ़ से सहते रहते मंहगाई, अन्याय और भ्रस्टाचार
पुरज़ोर बदलाव के जख़्म की खातिर, घर में छिपे रहते हरबार
गुफ़्तगू की छांव मे,बातों से यारों,हवा में हम भान्झते हैं तलवार
चर्चे तो इन्कलाबी हर शाम होते,उपर से तालियों की बौछार
तोतली जुवां भी सपाट बोलती,पर कुछ करने को होती नागवार
सजन