परिमल पंचपदी– वार्णिक (नवीन विधा)
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
23/07/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
अचंभा।
पवन का खंभा।।
यों चलता ही रहता है।
बहुत दूर चला जाता है पंछी
कभी वह किसी को कुछ नहीं कहता है।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
अन्यथा।
मत लेना तुम।
आजकल हूँ गुमसुम।।
जल्द ही उबर जाऊँगा हे मित्र,
मेरी अपनी कहानी की अपनी है व्यथा।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
अँगना।
खेत खलिहान,
खनक रहे हैं कँगना
प्रवेशद्वार पर लक्ष्मी के पाँव
पूजा घर पर बनाती नित्य ही अल्पना।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
अँचरा
ममत्व का फैला
मेरे इर्दगिर्द हमेशा
मेरा संरक्षण करती रहती
वह माँ है हाँ वह मेरी अपनी माँ ही है।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय