*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
14/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
सुखान्त।
न होता अशान्त।।
करता है समायोजित।
समयानुकूल सभी घटनाएं,
निर्णय भी लेता रहता है वो यथोचित।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
दुखान्त।
जब हो कहानी।
होती अशेष परेशानी।।
अस्त व्यस्त हो जाती संवेदनाएँ,
आँसूओं से लिखना पड़ता हर वृतान्त।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
प्रशान्त।
है ध्यानस्थ मुद्रा,
नहीं हो सकता क्लान्त।
अप्रभावित ही रहता है वह,
पूर्णतः लेता है साधक आत्मिक दीक्षान्त।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
विक्रान्त।
बनता विजेता
जीवन समरांगण में
कायरतापूर्ण सोच से ही मुक्ति
विजयी होने का महामंत्र जान लो मित्र।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय