परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
02/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
अकेले।
नहीं होते मेले।
दो हों तो ही बात बनती।
लेकिन कब तक कोई साथ दे,
आज जो मित्र है उसी से है बैर ठनती।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
झमेले।
पाल कर रखे।
सबके मैंने स्वाद चखे।।
कोई भी अंत तक नहीं रहता,
ये हादसे कई बार मेरे दिल ने झेले।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
तबेले।
आते- जाते रहे,
क्या पता किसने धकेले।।
मजे की बात तो ये जान लीजिए,
यहाँ जो आज गुरु हैं कल तक थे चेले।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
करेले
खाते ही रहिए
क्या जाने कब कोई भी
जीवन में कड़वाहट घोल दे
सेहत में असर कुछ ज्यादा नहीं होगा।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय