परिन्दें
“परिन्दें”
बड़ी बड़ी इमारतें है ठिकाना मेरा,
न जाने कहाँ है खाना मेरा ।
“परिन्दें” है हम इस दुनिया के,
खुला आसमान है सफर मेरा ।।
तेरा कांच का महल तुझे मुबारक,
तेरे महल से धायल चेहरा मेरा ।
कुछ इंसानियत तो रखो हे इंसान,
तेरे लालच ने तोड़ा आशियाना मेरा ।।
तेरी रंग बिरंगी पतंगों से,
बिखर गया है कबीला मेरा।
कभी महसूस करो हमें भी तुम,
दुनिया भी कहे क्या याराना मेरा ।।
:- राज कुमार कोछोर