परिन्दें जो उड़कर गए है।
लौटकर आएंगे वह परिन्दें जो उड़कर गए है।
बैठते कहाँ शजरो पे यूँ पत्ते भी ना रह गए है।।1।।
सोचा कुछ दूर जाने पे वह पलट कर देखेगा।
बेहिस वो ना पलटा है हम देखते ही रह गए हैं।।2।।
महफ़िल में बुलाया था हमको ना पता था यह।
वो हो गए है और के हम देखते ही रह गए है।।3।।
ज़िंदा रखूंगा उनकी नफरतों को अब सीने में।
जो हमारी ज़िन्दगी को ऐसे तबाह कर गए है।।4।।
सारी उम्र लड़ते रहे वो काफिरों से दुनियां में।
अब देखिए शहीद होकर ज़न्नत के घर गए है।।5।।
सारी उम्र काट दी उन्होंने तुम्हारी परवरिश में।
आज जो तुम्हारें घर से वह यूँ बेघर हो गये है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ