परिणाम विश्लेषण, (घनाक्षरी छंद)
घरू बात, चुनावी भाषा
घनाक्षरी छंद
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सास ने बहू से कहा, तेरे हाथ लगते ही,
घर का बौना सा मान , ज्यों जिराफ हो गया।
सोचा भी नहीं था वैसा, भरा खलिहान आया,
लगे हाथ सरकारी,कर्ज माफ हो गया।
चमक उठीं दीवालें,आंगन व द्वार सजे,
बोझ सिर पै रखा था,आफ आफ हो गया।
सारे कष्ट क्लेशों की, जमानत सी जप्त हुई,
दुखों का तो मानों सूपड़ा ही साफ हो गया।
साहस
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कदम कदम पर, सुविधाएं बांटी गईं,
जिन्हें सुख दिया वही, समय पै छले हैं।
सोचा भी नहीं था ऐसा, वैसा परिणाम मिला,
हमारे तो होम करने से हाथ जले हैं।
अपनों के भरोसे में, अपनों से मारे गए,
घाम ने सताया हमें,वट वृक्ष तले हैं।
काशी जी में शिव, और मथुरा में श्रीकृष्ण,
लगता है मस्जिद के भीतर ही भले हैं।
परिणाम घनाक्षरी
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जनता को पूरा पूरा कोई न पसंद आया,
मिली जुली खिचड़ी पकाय गई जनता।
जनता जहाॅं की राम नाम से जुड़ी हुई थी,
वही राम काम बिसराय गई जनता।
जनता के हेतु किये कितने कठिन कार्य,
फिर भी अधर में झुलाय गई जनता।
जनता से बड़ा लोकतंत्र में नहीं है कोई,
नतीजे चुनाव के बताय गई जनता।
समय समय की बात
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राजनीति शायरी में मंच ने कमाल किया,
सड़े सड़े शेरों को भी,भारी मिली दाद है।
पास रहे जिनके हमेशा ही छप्पन भोग,
रूखी सूखी रोटी का भी लेना पड़ा स्वाद है।
गधों को भी ज्ञानी बता, मक्खन लगा रहे हैं,
सत्ता पत्ता चलाने की, यही बुनियाद है।
कुरसी किसी को मिले, कुरसी का खेल सभी,
हमारी तो कविता कलम जिंदाबाद है।
गुरू सक्सेना
5/6/24