परिणति
वो जो है कुछ दबा दबा हुआ सा ,
कसमसाता, अंतस्थ उद्विग्न भावनाओं के भंवर में डूबता उभरता हुआ सा ,
आंतरिक द्वंद के चक्र में उलझा हुआ सा,
बाह्य सहजता के छद्म आवरण में
प्रवृत्त होता हुआ सा ,
प्रकट एवं अप्रकट संवादों के मध्य
त्रिशंकु बनता हुआ सा ,
शनैः शनैः आत्मबोध कुंठा ग्रस्त होकर
अवसाद में परिवर्तित होता हुआ सा।