परिंदों की व्यथा
शीर्षक – ” परिंदों की व्यथा ”
खुली हवा में उड़ना चाहते हैं परिंदे ।
उन्हें क़ैद कर क्या मिलेगा तुमको ?
नापना चाहते हैं आसमाँ को वो अब ।
उन्हें रोक कर क्या मिलेगा तुमको ?
फड़फड़ाकर पंखों को……. उन्हें सुकूँ मिलता है ।
बिना पानी-कीचड़ के कमल भी कहाँ खिलता है ।।
दरख़्त दर दरख़्त उनका सफ़र चलने दो ।
बंद पिंजरे में उन्हें तुम बेमौत मत मरने दो ।।
हरे शजर पर आशियाना चाहते हैं परिंदे ।
उन्हें क़ैद कर क्या मिलेगा तुमको ?
उड़ान अपनी जग को दिखाना चाहते हैं परिंदे ।
उन्हें रोक कर क्या मिलेगा तुमको ?
अपने शौक़ के ख़ातिर उनकी आज़ादी छीनी है ।
हर वक़्त अब उन्हें मायूसी की ज़िंदगी जीनी है ।।
अब उन्हें उनका आसमान लौटा दो ।
सुख से जीने का सम्मान लौटा दो ।।
बिछड़ों से अपने मिलना चाहते हैं परिंदे ।
उन्हें क़ैद कर क्या मिलेगा तुमको ?
उन्हें रोक कर क्या मिलेगा तुमको???
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 ,अहिल्या पल्टन ,इकबाल कालोनी
इंदौर ,मध्यप्रदेश