परिंदे सोच में है
परिंदे सोच में हैं ,
आदमी क्यूँ बंद घर में है ।
क्यूँ मौसम अजनबी सा हर ,
गांव और शहर में है ।।
कहाँ क्या हो गया कुछ ,
भी समझ में तो नहीं आता ।
कि डरता था जिसे सारा ,
जहां वो किसके डर में है ।।
रहो अंदर न निकलो घर से ,
बाहर शोर है कैसा ।
यही इक बात फैली आज ,
देखो दुनिया भर में है ।।
कोलाहल शांत है चारों ,
तरफ नीरवता छाई है ।
लगे आध्यात्मिक संसार ,
शांति की डगर में है ।।
शुद्ध पर्यावरण अच्छा ,
दिखाई दे रहा है अब ।
इसे दूषित करे वह शक्ति ,
बोलो किस जहर में है ।।