‘परिंदा’
न बंदिशें न रंजिशें,
बड़ी खुशहाल जिन्दगी है।
जिधर चाहे उधर उड़े,
चाहे जिधर उधर मुड़े।
न ख़फ़ा किसी के होने की फिक्र,
न किसी के बेवफ़ा होने का जिक्र।
उड़ते जाना बंदगी है,
बड़ी खुशहाल जिन्दगी है।
न बंदिशें न रंजिशें,
बड़ी खुशहाल जिन्दगी है।
जिधर चाहे उधर उड़े,
चाहे जिधर उधर मुड़े।
न ख़फ़ा किसी के होने की फिक्र,
न किसी के बेवफ़ा होने का जिक्र।
उड़ते जाना बंदगी है,
बड़ी खुशहाल जिन्दगी है।