परिंदा
एक वही था
परिंदा
जिसका अपना कुछ ऐसा आलम था
हवाओं ने उसे बहुत ही उड़ा रखा था
बना बनाया उसका घर उजाड़ रखा था
वो करता शिकायत अपने दर्द की किससे
जब उसके अपने ही उसे बिगाड़ रखा था।
उसका भी अपना ऐसा कुछ समय आएगा
जो खोया है उसने वो सब अब वो पाएगा
प्रकृति का अपना कुछ ऐसा करिश्मा है
उसको उतना ही वापस सब मिल जाएगा
उसको जिंदगी में दोबारा नया मोड़ आएगा।