पराया हुआ मायका
उसके हाथ से था वो बनाया हुआ मायका
उसकी ही चहक से चहचहाया हुआ मायका
फिर एक दिन पिया के संग हो विदा चली गई
एक पल में अपना से पराया हुआ मायका
वो मायका जहां जनम उसको दिया था मात ने
दुलारा था हरदम जहां था दादा – दादी तात ने
वो मायका जहां पे वो पली-बढ़ी जवां हुई
खट्टी-मीठी यादों से पलभर में ही जुदा हुई
बचपन से जवानी तलक बिताया हुआ मायका
एक पल में अपना से पराया हुआ मायका
सखियों और सहेलियों के संग खेली थी जहां
दीवाली- पटाखे होली के रंग खेली थी जहां
खुशियां थी बिखेरती परिवार की हंसी थी वो
घर के कोने-कोने में गहराई तक बसी थी वो
उसके होने से सबल कराया हुआ मायका
एक पल में अपना से पराया हुआ मायका
भाईयों-बहनो के संग बेबाकियों का दौर था
तनाव,गम,दुखों का कहीं दूर तक न ठौर था
आते थे रिश्तेदार सब,और थे बुलाते सभी
भाते जो मन को सदा थे रिश्ते व नाते सभी
मन से सारे रिश्तों को निभाया हुआ मायका
एक पल में अपना से पराया हुआ मायका
आज जब चली तो जैसे रोने पूरा घर लगा
हो गई व्यथित जमीं और कांपने अंबर लगा
कल तलक करते थे जो झगडे़ सभी रोने लगे
आंगन भी लगा रोने और कमरे सभी रोने लगे
रुखसती पे लग रहा दुखाया हुआ मायका
एक पल में अपना से पराया हुआ मायका
शायद न बुना जाएगा पहले सा ताना-बाना अब
जा रही ससुराल है वो जाने होगा आना कब
ताकती हर मुंह है वो बेजुबानों की तरह
आ भी पाएगी तो अब मेहमानों की तरह
शादी की डोर के लिए गंवाया हुआ मायका
एक पल में अपना से पराया हुआ मायका
विक्रम कुमार
मनोरा , वैशाली