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17 May 2020 · 1 min read

पराधीन

सत्य कहा है तुलसीदास,
पराधीन होने से उत्तम है वनवास ।
अधीनस्थ रहने वाले ही होते दोषी,
स्नेह, सहानुभूति कहाँ कहलाते परपोषी।
होता सदा उनका जीवन धरती का भार,
ढोता रहता जग का जीवन पर्यन्त दुराचार।
पथपत्थर सा ठोकर खाता,
नित दिन जीता ,नित दिन मरता।
पराधीन है नहीं, एक आलस्य की पहचान,
भाग्यहीन भी है उसका एक प्रबल प्रमाण।
भाग्य खड्ग प्रहार के मारे बेचारे,
बलपूर्वक जीना पड़ता किसी और सहारे ।
सौभाग्य युक्त होता जब कोई बंधु,
कहलाता उसका ही जीवन स्वावलंबन का सिन्धु ।
मान धरम तो कब के छुटे,
जब बंधा मनुज किसी और के खुटे ।
दोहन होने वाले पशु शोषण के अधिकारी,
भोजन की आश भी हुई जैसे दीन भिखारी ।
पराश्रित से टूटा स्वस्वप्न रुपी वृक्ष पलाश,
सत्य कहा है तुलसीदास,
पराधीन होने से उत्तम है वनवास ।
उमा झा

Language: Hindi
10 Likes · 2 Comments · 328 Views
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