पराठों का स्वर्णिम इतिहास
हमें तो एक रोटी और पराठे में, केवल यही एक अन्तर दिखता है।
एक बस तवे के ऊपर ही रहे, तो दूजा तवे के बिना ही सिकता है।
सही कहा गया है कि दिल के ताले की चाबी होती है पेट के पास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
पहले तो उत्तर भारत राज्यों ने, पराठे का ख़ूब प्रचार प्रसार किया।
बाद में तो सभी दिशाओं ने, इस दिशा से छीन वो अधिकार लिया।
पराठा किस दिशा का व्यंजन?, ऐसी बहस तो छिड़ी है अनायास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
सिंगापुर में कहते हैं रोटी प्राटा, मलेशिया और मॉरीशस में फराटा।
तटवर्ती देश कहते बस्सप शट, म्यांमार में पराठा कहलाए पलाता।
जिसे इतने सारे देशों ने अपनाया, उसमें कुछ तो बात होगी ख़ास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
कभी खाली-भरा, तो कभी ज़्यादा-ज़रा, इसके भी रूप अनेक हैं।
गोल, तिकोना व चौकोर जैसे ही, इसके मनमोहक रूप अनेक हैं।
सदियों से सब पर उपकार करे, ये हर भूखे उदर में भर दे विश्वास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
आलू, प्याज व गोभी रूप में, हर पराठे की स्टफिंग तैयार होती है।
मूली, पनीर व मिक्स रूप में, स्वाद की नई फिलिंग तैयार होती है।
ऐसे नए प्रयोगों को देखते ही, अधिक बढ़ जाती है भूख की आस।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
रहे भूखा पेट, हो ख़ाली समय, पराठा दोनों समस्याओं का हल है।
जो सारी सब्जियाँ रोचक बनाए, ऐसा ही सार्थक प्रयास सकल है।
इनका राज हर रसोई की प्लेट में, ऐसा कोई शेष नहीं रहा निवास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
मक्खन पराठे का रूप निखारे, ज़ायका तो घी मिलने से आता है।
अचार थाली की शोभा बढ़ाते, दही मिलाते ही प्यार बढ़ जाता है।
प्रत्येक खाद्य के साथ मिलकर, सदा बदलता रहा इसका लिबास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
अब वो समय भी विलय हुआ, जज़्बात की कोई बात नहीं करता।
यहाॅं सबको त्वरित खाना चाहिए, स्वाद की कोई बात नहीं करता।
आज की भागती ज़िन्दगी से, विलुप्त हुई भोजन में छिपी मिठास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
आज पीढ़ियाँ चाव से चखे, विदेशी चाउमिन, मोमो, थुप्पा व रोल।
जो कम खाए तो जी ललचाए, ज़्यादा खाए तो पाचन में हो झोल।
आज तो फास्ट-फूड का ज़माना, खुलकर करे पराठों पर उपहास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
इस देश के अधिकांश राज्यों में, आज भी पराठे का बोलबाला है।
हर थाली से है इसका जुड़ाव, पराठा ही सबका प्रमुख निवाला है।
यूॅं लोगों से वाहवाही मिलते ही, आ जाए इस व्यंजन को भी सांस।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
स्वदेश के लोग शिक्षा-दीक्षा के लिए, विदेशों की ओर जाने लगे हैं।
विदेशी तो भारत से प्रभावित होके, इस देश की ओर आने लगे हैं।
सभ्यता व समाज के संग में, हो गया है इस व्यंजन का भी प्रवास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
भारत के साथ अन्य कई देश भी, पराठों का भरपूर स्वाद लेते हैं।
पराठों का रसास्वादन करते हुए, सब खुश होकर इसे दाद देते हैं।
पुष्प की सुगंध को फैलने के लिए, थोड़ा तो करना होता है प्रयास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।
चाहे कोई कुछ भी कहे, पराठे से ज़्यादा बार ये मन कोई न जीता।
अब फास्ट-फूड की प्रशंसा में, पराठों का भव्य युग बेरंग ही बीता।
कई पकवान चखने के बाद भी, शांत नहीं होती ये उदर की प्यास।
बड़ा ही सुगंधित और स्वादिष्ट है, इन पराठों का स्वर्णिम इतिहास।