पराक्रम
वह भुजबल ही क्या, भुजबल है,
बंदी पर कहर प्रहार करे।
वह साहस ही क्या साहस है
मूर्छित का गर्दन काट चले ।
भुजबल की चाह अगर है तो,
बंदी को बंधन -मुक्त करो।
हे देखना साहस अगर,
मूर्छित मे चेतना आने दो ।
फिर धरा-गगन को एक न कर दूँ,
सौ -सौ गर्दन बेध न कर दूँ।
यह भूमि है उन वीरों की,
गुंजे पवन गंभीरों की।
कृष्ण की थी वह प्रतिज्ञा,
शस्त्र कभी उठाऊँ न,
चाहे जितना अब,
विषम विकट क्षण हो जाए न।
देख शौर्य प्रदर्शन,
भीष्म का कुछ ऐसा ।
कृष्ण हो गए,
खिसयाई बिल्ली के जैसा ।
अपनी ही कथनी,
का मुख मोड़ चले।
रणभूमि के गिरे परे,
टूटे ही पहिया ले दौड़ चले।
वह जीवन ही क्या, जीवन है
जब अरि शिर पर बैठा राज करे,
वह धीरज ही क्या , धीरज है,
जब अरि अपनों को संहार चले ,
जीवन की चाह अगर है तो,
परतंत्रता का प्रति क्षण प्रतिकार करो,
धैरज की चाह अगर है तो,
बन पाषाण रिपू मस्तक सवार रहो – – – ।
उमा झा