परशुराम
परशुराम का फरसा निकला
रेणुका का तन डोला ।
कैसी दुविधा भगवान
हमें देने पड़ेंगे प्राण
रेणुका बोली मुख से बोली
विष सी विषैली जवानी ,
प्रिय ( ऋषि जमदग्नि )तेरे नाम पर।
फिर भी ना पुरूष का अहं डोला ।
बेटा परशुराम काट दे अपने माँ सिर ।
काट कर परशुराम ने सिर माँग लिया वर
माँ को हे पिता जिला दें ।
ऐसी कथा है।
सुन लगे व्यथा है ।
कहते हैं क्षत्रिय श्री राम
आप अधिक अधीर है परशुराम ।
मैली थी क्षत्रिय टोली
इसलिए आप ने किया उनका सर्वनाश ।
समय बदल गया परशुराम ।
प्रण पर प्राण ,
देने वाले का नाम है श्रीराम
राम कथा अगार है।
सुनने वाले का बेड़ा पार है।
समय बदल गया परशुराम , कहते है श्रीराम
प्रण पर प्राण देने वाले का नाम है श्री राम
_ डॉ . सीमा कुमारी बिहार (भागलपुर)।
स्वरचित रचना 22-11-019 की है। इसे आज ही प्रकाशित कर रही हूँ ।