परवाज़
परवाज़
मेरी परवाज़ को तुम रोक ना पाओगे के मेरा अंदाज़-ए-उड़ान मुक्तलिफ़ है,
मैं बारिशों में बादलों की छत पर उड़ता हूँ,
सर्दियों में कोहरे के धुएं से होकर गुजरता हूँ,
पसीने से गर्मियों में अपनी प्यास बुझाता हूँ,
तूफानों के तुनक मिज़ाज़ से अपना दिल बहलाता हूँ।
रगों में लहू नहीं जुनून दौड़ता है,
आंखों में ख़्वाब मचलते रहते हैं,
लबो पर मंजिलों के किस्से जवां रहते हैं,
कुछ कर गुजरने के हौसले दिल पर हावी रहते हैं l
इरादों की नीयत है नेक,
रास्तों के हौसले मज़बूत हैं
अरमानो से लबालब है जीवन हाला,
हर मुश्किल को कर सकते नेस्तोनाबूद हैं,
फिर कैसे ना मिलेगी मंज़िल मुझे!
सोनल निर्मल नमिता