पऱवरिश़
पहले देखा जाता था कि बच्चे रूठते थे जिद्द करते थे। फिर सब कुछ भूल कर मान जाते थे ।परंतु आज के दौर में बच्चे जिद्द करते हैं और अपनी माँँग मनवाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं ।यहां तक कि आक्रोशित होकर तोड़फोड़ करते हैं ।और बड़ी मुश्किल से शांत होते हैं ।इसका प्रमुख कारण हमारी परवरिश है जो उन्हें इस प्रकार जिद्दी और आक्रोशित बनाती है ।बच्चों के प्रति प्रेम की परिभाषा को हमने गलत समझ लिया है। कि बच्चों की हर एक माँँग को पूरा करना इस भौतिक जगत में प्रेम प्रदर्शित करना है। जबकि इस प्रकार व्यवहार से हमने बच्चों को ना सुनने के लिए तैयार नहीं किया है ।जिसके फलस्वरूप बच्चे ना सुनने को तैयार ही नहीं रहते। और उनमें इस सोच के लिए प्रज्ञा शक्ति का विकास नहीं होता ।इस प्रकार बच्चे बड़े होकर नकारात्मक परिस्थितियों में अपने आप को तैयार नहीं कर पाते हैं। और मानसिक तनाव एवं डिप्रेशन तक की मानसिक स्थिति में आ जाते हैं ।अतः यह जरूरी है कि बचपन से ही हम उन्हें ना सुनने के लिए के लिए तैयार करें ।जिससे वे परिस्थिति को समझते हुए उसके अनुरूप अपने आप ढालने के लिए तैयार कर सकें ।और बड़े होने पर विषम परिस्थितियों का आत्मविश्वास से मुकाबला कर अपने आप को मानसिक तनाव एवं डिप्रेशन मुक्त रख सकें।