परदेश
सजन बसे परदेश में याद ना आए गांव की।
ताल तलैया याद रहे ना बरगद के छांव की।।
गांव के सूने चौक चौबारे सूनी गलियां सूने द्वारे।
रस्ता देख रही है आंखे बैठ बैठ हर दिन औसारे।।
रोटी एक बनाई होती आधी आधी खाई होती।
थोड़े में ही कट जाती उम्मीद यूं ना बड़ाई होती।।
गिरने लगी मुंडेरे अब तो तेरे पुराने ठांव की।
जब पूनम की रात में चंदा भी तो निकलता होगा।।
याद हमारी आने पर कुछ तो दिल में सलता होगा।
तेरे आने की चाहत में मां की आंखे हैं पथराई।
सावन आया निकल गया सूनी रह गई तेरी कलाई।।
फूली बहुत है अमराई कुहकी कोयल अपने गांव की।
जाकर के परदेश में पैसा खूब कमाया होगा।।
मृगतृष्णा से ख्वाब में तन भी खूब गलाया होगा।
कितने सांझ सवेरे गुजरे कितना नीर बहा नदियों में।।
मिलन की रैन कब आयेगी खनक बची है चूड़ियों में।
जतन कौन सा करूं पिया मैं याद जो आए गांव की।।