परदेशीया
एह धरती से बड्ड पियार करू
ओकर नैय छै कोनो मोल
मुदा
विधाता परदेश लिखलथि
हाय रे भाग्य
भेलहुँ माटि सँ बहुते दूर
अपन रहै सभ
आब दुलार कहाँ छै
माय केर समाद
बजैतहु हम्मे कखनो
खसै छै खाली नोर
अतह सँ ओतह धरि
सभ्भे भीजल ही भीजल
छियै बस हम्मे परदेशीया
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य