परतंत्र का गणतंत्र
गणतंत्र आया ,गणतंत्र आया
देखो कलुआ 26 जनवरी गणतंत्र आया।
कलुआ कुछ समझ न पाया
मन ही मन दुहराया
गणतंत्र आया , गणतंत्र आया।
बाहर देखा तो सूट बूट पहने
बच्चों की एक टोली,
आपस मे खेल रही हमजोली,
उनके मुँह से निकल रही
फ्लैग और रिपब्लिक डे की बोली,
कलुआ रिपब्लिक भाषा समझ न पाया
मन ही मन दोहराया ……….
उसने झट से छत पर पहुँचा
अपनी नजरों को इधर उधर खींचा,
कानों में एक आवाज सी आई
नेता जी की बात सुनाई,
सुनो देश के वासियो ,बड़े भाग से शुभ दिन आया,
गणतंत्र आया……
नेता जी ने वीरों की गाथा गा कर
इतिहास दुहराना सुरु किया,
कुछ विद्वानों का नाम लेकर
संविधान बनाने का दावा पेश किया,
संविधान हमारा न्यारा है
सब देशों से प्यारा है
नाही कोमल नाही कठोर,
यह अंशतः लचीला है
सभी धर्म- जातियों का रखवाला
मूल में 22 भाग 8 अनुसूची 395 अनुच्छेदों वाला है,
निरक्षर कलुआ इन सब बातों को समझ न पाया
मन ही मन दुहराया गणतंत्र………
आगे नेता जी की भाषण जारी रही
उन्ही हाथों से ताली बाजी, जो हाथ आज तक भिखारी रही;
जीन हाथों में दस्ताने थे
उनके चेहरे पर ख़ुशहाली थी,
नंगे हाथों को गर्म करने के लिए
बस ताली ही ताली थी,
समानता की बाते कहना
ऐसा लगता दीनहीनो को सोना मिलना,
सदियों से शोषण सहने वाला
क्या खोया क्या पाया
गणतंत्र आया…
हमने शिक्षा सड़क रोजगार दिया
और लोगों को घर-द्वार दिया,
जीएसटी हो या नोटबन्दी
तीन तलाक पर विचार किया,
राम मंदिर हो या आर्थिक मंदी
इन सबसे देश का उद्धार किया,
उद्धार किया उन गरीबों का
जिनका अन्य दलों ने मज़ाक बनाया
गणतंत्र आया…
इन सब बातों को सुन कलुआ
दिया नजर दौड़ाए,
कहां कितनी सच्चाई है
यह कैसे समझाए,
फुटपाथ पर सोते कितने
जाने दिन बीते कितने,
नही बना सड़क मकान
शिक्षा से हैं हम अनजान,
नही मिला है हाथों को काम
सब जगह होते हैं बदनाम,
ये कैसा बदलाव ये कैसी समानता
कोई खाए बिन है मरता
किसी घर में अनाज है सरता,
जो करते हैं अथक काम
उनको मिलता है कम दाम,
जो करते हैं आराम
उनको मिलता है ईनाम,
दागी दोहरे चेहरे वाले
लोगों को क्या मूर्ख बनाया,
गणतंत्र आया…………
नाही है अपनी भेष भूषा
नाही है अभिव्यक्ति,
नाही है अपनी भाषा बोली
नही है अपनी उक्ति,
बोलते हो अंग्रेजी भाषा
जबकि हिंदी है राष्ट्रभाषा,
मेरी समझ में न आया
अधिनायकों ने ये कैसा
गणतंत्र थमाया,
स्वतंत्रता दिवस ने बादल और बरसात लाया,
तो गणतंत्र दिवस ठण्ड और कुहास लाया ,
किसी ने विकास नही लाया
कलुआ मत देखो 26 जनवरी
परतंत्र का अपभ्रंश गणतंत्र आया ।
विकास का सूरज बादलों और कुहासों में ढंका रहा….. ….