परतंत्रता की नारी
परतंत्रता की नारी
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पग बंधी परतंत्रता की बेड़ी
अभिव्यक्ति मुंह पर दबी पड़़ी
पग पग खडी फिरंगी काया
दबा रही भारत की मोह माया
झांक रहा था नारी काआंगना
क्रूर क्रूरता से दबी थी बेचारी
भाव भावना दूर खड़ी देख रही
हतप्रस्त लाचारी घर की बेचारी
माता के जिगर पर क्षण क्षण थी
क्रूरता वाणी और घात कुठारी
अमन सुख छीनती देख रही थी
लाचार विवश पड़़ी अवला नारी
जीवन पथ रक्षक मौन खड़ा था
उज्जवल भविष्य पाश से बंधा
मन ही मन रो रही थी भारत नारी
टी.पी. तरुण