परछाई
कल मैंने एक सपना देखा
सपने में एक चेहरा देखा
चेहरा कुछ मेरे जैसा था
कुछ बूढ़ा सा दिखता था
मुझसे बोला धीरे से वह
मैने तेरी जेब खंगाली
मै बोला पाया क्या तूने
वह बोला तेरी कंगाली
कुछ तनहाई के टुकड़े
कुछ आँसू के कण थे
एक कोने में दर्द पड़ा था
और एकाकीपन के क्षण थे
और टटोला जब देखा तब
एक कोने में चिन्ता पाई
वृत्ति और स्मृति भी देखी
धुंधली सी पाई तरुणाई
मै बोला कुछ और देख तो
क्या क्या रक्खा छिपा वहाँ है
वह चेहरा ओझल हो बोला
स्वयं देख तू कौन कहाँ है
आँख खुल गई कुछ न वहाँ था
मै और मेरी तनहाई थी
बिस्तर की सिलवट तब बोली
वह तेरी ही परछाई थी