परछाईयों के शहर में
परछाईयों के शहर में परछाई बन कर रह गई।
तेरी मोहब्हत ही मेरी रुसवाई बन कर रह गई।
जोश तो मुझ में भी था आँधियों सा यूँ तो कभी
अब तो बहते प्यार की पुरवाई बन कर रह गई।
कोरे कागज़ सी रही थी जिंदगी मेरी लेकिन
बाद तेरे बस ये एक रोशनाई बन कर रह गई।
कहकहों से घोलती थी रस सभी के कानो में
देख तेरे कारन आज मै रूलाई बन के रह गई।
मधुर संगीत सी होती थी कभी ये जिंदगी
अब तो ये दर्द भरी शहनाई बन के रह गई।
Surinder Kaur