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20 Aug 2024 · 1 min read

परछाईं (कविता)

जबसे हमने होश सम्भाला,
तब से मैं उसे देख रही हूँ
कभी देखकर दुखी हो जाती,
कभी देख खुश हो जाती हूँ
पता नही वो कौन है?

जो साथ-साथ रहती है मेरे
कभी तो उससे डर जाती हूँ,
कभी सोच में पड़ जाती हूँ
हिम्मत करके पूछ ही बैठी,
बताओं कौन हो तुम ?
क्या तुम मुझपर नजर रखती हो?
या फिर तरस खाती हो मुझ पर ?

मुझे सुन वह हो गई मौन,
मुस्कुरा कर बोली
मैं तो तेरे साथ आई हूँ,
साथ तेरे ही जाउंगी
मैं कुछ झिझक कर बोली,
चल हट, रौशनी में तुम साथ होती हो
अँधेरे में छुप जाती हो

नहीं! कहकर फिर वो बोली,
तुझसे ही मेरा अस्तित्व जुड़ा है
खत्म भी तुमसे ही होगा।
क्योंकि मैं हूँ तेरी परछाईं।
जय हिंद 🙏

Language: Hindi
30 Views
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