परख और पारखी
लोग दुख भोग रहे हैं, अतीत को ढोह रहे हैं,
सुख वर्तमान में है, खोजने की बजाय, मान कर, मान्यताओं में घूसे बैठे हैं .।।
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स्वाध्याय जरूरी है !
खुद की समझ का विकास जरूरी है,
निर्णय लेने की क्षमताओं का विकास जरूरी है,
सामाजिक विकास में आलोचना बेहद जरूरी है,
…।।।
बिन अभ्यास पारंगतता अनुभव नहीं बनता,
किसी सफलता का कोई सीधा रास्ता नहीं होता,
सोना धातु तपकर ही निखरती है, उतनी ही मूल्यवान हो जाती है,
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