पन बदला प्रण बदलो
रोटी अपनी कम करो, थोड़ी कर दो चाह।
सहज सुखद हो जाएंगी, बुढ़ापे की राह।।
हो जाए जब तन शिथिल, मन की खीचों डोर।
मैं मेरा सब भूलकर, सौप दो सबको डोर।।
अपनों में अपनी खुशी, दुख सब राखो जोए।
कर्ता समझो ईश को, तो दुःख काहे को होए।।
मस्त रहो तुम ईश में, ये मिथ्या है सारा संसार।
“संजय” सुख में है वही, जो बाटे सबको प्यार।।