पन्नें
पन्ने पलट रहे हैं
हल्की हवा से
यूं कहें तो,
पन्ने खुल रहे हैं
चरागों के रोशनी से
ये पन्ने,
नूर दे रहे
उस अंधेरी आंख को
बड़ी ढीठ हैं वे आंखें,
तरेर रहीं पन्नों को
यूं कहें तो
बड़ी व्यग्र हैं ये आंखें
टटोल रही हैं पन्नों को
पर पन्नें पलट रहे हैं
अब भी निरन्तर,
हवा जो है चलफर।
स्वरचित।।