पनाह
कोशिशें बहुत की
फिर भी न जाने कयूं
गुजर रही है जिन्दगी
नित नये गुनाहो मे ।
भुला कर तुझे
भटक रहा है दिन रात
चंचल नादान मन मेरा
आज दसों दिशायों मे ।
जी भर की जी है
मैंने जिंदगी तेरी
थक सा गया हूं
सफर के कुछ बदलते रास्तों मे ।
लगता नही दिल
तेरे संसार मे
आवाज दे के बुला ले मुझे
अब तू अपनी पनाहों मे ।।
राज विग 26.07.2021