पनाह में
जो है नही उसे पाने की चाह में
दिन-रात गुजरता है बस आह में ।
महफ़िलों में अब वो रौनक नहीं
है लज़्ज़त भी नहीं वाह!वाह!में।
मंजिल की तलाश ही बेमज़ा है
अगर न मिले हमें ठोकरें राह में ।
इश्क़ इस दौर इक इदारा है यारों
देने पड़तें हैं चंदे ज़िस्मोनिगाह में ।
अजय तू क्यों फ़िक्रमंद है बेहद
तेरी हस्ती है वक़्त के पनाह में
-अजय प्रसाद