पनघट
पनघट अब मिलते कहाँ , सूख गए सब कूप
देखो अब तो गाँव का ,बदल गया है रूप
हँसता था पनघट जहाँ , आज वहाँ सुनसान
होता था ये गाँव की , कभी बड़ी सी शान
अब भी हैं देखो यहाँ , कितने ऐसे गाँव
पनघट पर जाना पड़े , कोसों नंगे पाँव
पनघट पर मिलते रहे , कितने प्यासे नैन
पली यहाँ पर प्रीत भी, मिला दिलों को चैन
पनघट पूरे गाँव को, करता था परिवार
सुख दुख सारे बाँट कर, बढ़ जाता था प्यार
डॉ अर्चना गुप्ता