पनघट
गाँव का पनघट कभी
एक ठंडी मीठी जगह
हुआ करता था
जहाँ सारे गाँव की स्त्रियाँ
एक दूसरे से मन की बात कर
सुख दुख बाँट लेती थीं
फिर हैंडपंप आये,
फिर घर-घर नल
जीवन कुछ सुगम हुआ
घर में पानी की किल्लत
तो दूर हुई
स्त्रियों के मन के
कुछ कोने रीते रह गए
वो हँसी ठिठोली
वो अपनापन घरों के अंदर
सिमट कर रह गया
पनघट का अस्तित्व खोने के साथ
सामाजिक संवाद भी कहीं खो गया…
©️कंचन”अद्वैता”