पनघट के पत्थर
कुछ यूं
कहते हैं
पनघट के घिसे पत्थर
तुम क्यों अभिमान करते हो
निरीह बेजुबा हैं जो
उनकी जिंदा लाशों पर
सीना तान चलते हो
गर लगी वक्त की ठोकर
कोसों दूर जा गिरोगे
और फिर हमारी तरह
पनघट के पास रहकर भी
कड़ी धूप में जलकर
प्यासे मरोगे
प्यासे मरोगे ।