पनघट और मरघट में अन्तर
पनघट पर प्यास है बुझती,
मरघट पर लाशे है जलती।
देखो यह जीवन की धारा,
सदैव जग में चलती रहती।।
पनघट पर सब पानी है पीते,
मरघट पर सब प्राण है देते।
चलती रहती ये सदैव प्रक्रिया,
हंसते रहते हम ही रोते रहते।।
पनघट पर कोलाहल है होता,
मरघट पर मौन व्रत है होता।
एक तरफ मेला लगा हुआ है,
दूसरी तरफ मन शांत है होता।।
पनघट पर पनहारिन है आती,
मरघट पर रिश्तेदार व नाती।
पनघट से सब पानी है लाते,
मरघट से सब राख ले जाते।।
पनघट पर पानी के घड़े होते,
साथ वहां रस्सी व डोल होते।
मरघट में ये सब नही मिलता,
केवल शांति के अंबार है होते।।
पनघट पर कुएं है खूब गहरे,
मिलेगे वहां चमकते हुए चेहरे।
रस्तोगी दोनो में अंतर बताए,
मरघट में मिलेगे दुखी चेहरे।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम