पधारो नाथ मम आलय, सु-स्वागत सङ्ग अभिनन्दन।।
पधारो नाथ मम आलय, सु-स्वागत सङ्ग अभिनन्दन।।
_________________________________________
धनाधिप यक्ष नरवाहन, निधीश्वर विश्रवा नंदन।
पधारो नाथ मम आलय, सु-स्वागत सङ्ग अभिनन्दन।।
बदी शुभ कार्तिक का यह, सदा शुभ पर्व धनतेरस।
सनातन सभ्यता जिसपर, करे नित गर्व धनतेरस।
मनाऊँ आज धनतेरस, करूँ मैं आपका वंदन।
पधारो नाथ मम आलय, सु-स्वागत सङ्ग अभिनन्दन।।
हुआ था सिंधु का मंथन, अनलमुख देवता आये।
असुर बल नाश करने को, सुधा सङ्ग आप ही लाये।
मधुप का था हुआ उद्भव, मिटा देवत्व उर क्रन्दन।
पधारो नाथ मम आलय, सु-स्वागत सङ्ग अभिनन्दन।।
करूँ पूजन करूँ वंदन, मुदित मन सद्य यक्षेश्वर।
समर्पित मैं करूँ तन-मन, नवाकर शीश सर्वेश्वर।
सजाऊँ थाल दीपों की, लगाऊँ भाल पर चंदन।
पधारो नाथ मम आलय, सु-स्वागत सङ्ग अभिनन्दन।।
रहे काया निरोगी मन, प्रफुल्लित आप की माया।
सकल सुख सम्पदा वैभव, सभी कुछ आप से पाया।
दरश के आपका प्रभु नित, करे निज वक्ष स्पंदन।
पधारो नाथ मम आलय, सु-स्वागत सङ्ग अभिनन्दन।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा ( मंशानगर )
पश्चिमी चम्पारण
बिहार